अमर शहीद कुँवर प्रताप सिंह बारहठ ने हिला डाला था ब्रिटिश साम्राज्य
रिपोर्टर योगेश सोनी @बालोतरा
बालोतरा। रक्तकोष मित्र मंडल सेवा संस्थान के तत्वाधान में अमर शहीद प्रताप सिंह बारहठ की जयंती का आयोजन स्थानीय डाभी स्टूडियो में संस्थान सदस्यों द्वारा अमर शहीद प्रताप सिंह बारहठ की प्रतिमा पर माला एवं पुष्प अर्पित कर जयंती समारोह का आयोजन किया गया। इस श्रृद्धांजली कार्यक्रम में चारण समाज अध्यक्ष नरपत सिंह रत्नू ने बताया की अमर शहीद क्रांतिकारी कुंवर प्रताप सिंह बारहठ ने ब्रिटिश साम्राज्य को हिला दिया था। रत्नू ने बताया की बारहठ का जीवन देश को समर्पित रहा है और पूरा परिवार देश को बलिदान दिया है। वहीं चारण समाज के वरिष्ठ समाजसेवी मूलदान आशिया ने बताया की कम उम्र में देश की आजादी के लिए हंसते हंसते हुए भारत माता कि गोद में समर्पित हो गए। वहीं संस्थान सदस्य मोहम्मद रमजान ने बताया की संस्थान हमेशा मानवीय सेवा के प्रति समर्पित हैं और हम सब युवा उनके बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देंगे।
वहीं संस्थान सदस्य विक्रम सिंह चारण बताया की संस्थान द्वारा समय समय रक्तदान का कार्य करते हुए यह टीम प्रत्येक क्रांतिकारियों को समय समय पर याद करते हुए कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। संस्थान सदस्य एवं पार्षद कांतिलाल हुंडिया ने बताया की जिन्होंने अपने देश को आजाद कराने के लिए अंग्रेजो के हाथ से अलग कर आज देश को आजाद करवाया।यह बलिदान व्यर्थ नहीं जाने देंगे। हुंडिया ने बताया की हर समुदाय के महान व्यक्तियों को उनके समाज के लोग तो सभी जानते है, लेकिन अन्य जन समुदाय में कोई नहीं पहचानता है और उन्हीं अन्य समुदायों के लोगों के दिलों में सभी समाज के महान लोगों की जानकारी पहुँचाने के उद्देश्य से अमर शहीद महान क्रांतिकारी कुँवर प्रताप सिंह जी बारहठ की जन्मजयंती व पुण्यतिथि पर टीम रक्तकोष मित्र मंडल द्वारा श्रृद्धांजली कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
संस्थान सदस्य विक्रम सिंह चारण ने डेली बालोतरा न्यूज को शहीद प्रताप सिंह बाहरठ के इतिहास के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि देश की आजादी की खातिर भगतसिंह से पूर्व भी पैदा हुआ था एक भगतसिंह जिसने मात्र 19 वर्ष की आयु में कर दिए थे ब्रिटिश साम्राज्य की अंग्रेजी हुकुमत के दांत खट्टे और हिला डाली थी ब्रिटिश साम्राज्य की जड़े।
महाराणा प्रताप की तरह केशरी सिंह बारहठ के परिवार ने भी देश के लिए किया था अपना सर्वोच्च त्याग और उन्हीं केशरीसिंह बारहठ की संतान थे कुँवर प्रतापसिंह बारहठ।
प्रताप सिंह बारहठ का जन्म 24 मई 1893 को उदयपुर में हुआ था। दयानंद स्कूल, जैन बोर्डिंग में पढ़ाई के बाद वे प्रसिद्ध देशभक्त वीर अमीरचंद्र के यहां रहे और वहीं वीर अमीरचंद उनके प्रेरणा के केंद्र रहे।
अंग्रेजी हुकुमत द्वारा 11 दिसंबर 1911 को कलकत्ता के स्थान पर दिल्ली को देश की राजधानी बनाने का फैसला किया गया था। ब्रिटेन के राजा रानी उस समय भारत के दौरे पर आए हुए थे और उन्होंने दिल्ली के बाहरी इलाके में आयोजित दिल्ली दरबार में यह ऐलान किया था कि भारत की राजधानी कलकत्ता की बजाय अब दिल्ली होगी।
वर्ष 1912 में देश की राजधानी को कलकत्ता से बदल कर दिल्ली में शिफ्ट करने के लिए दिल्ली दरबार में भव्य आयोजन की तैयारी हो रही थी। जिसके उपलक्ष्य में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा वायसराय लार्ड होर्डिंग के नेतृत्व में एक भव्य जुलूस का आयोजन किया जाना तय किया गया था। क्रांतिकारी रास बिहारी बोस ने इस जुलूस को विफ़ल करने के उद्देश्य से वायसराय लार्ड हार्डिग पर बम फेंकने की योजना बनाई। जिसके लिए उन्होंने जोरावर सिंह बारहठ और उनके 19 वर्षीय भतीजे प्रताप सिंह बारहठ को चुना।
23 दिसबंर 1912 को जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद की शक्ति का प्रतीक वायसराय लार्ड हार्डिंग का भव्य जुलूस दिल्ली के चांदनी चौक पहुंचा तो जोरावर सिंह बारहठ ने उन पर एक के बाद एक कई बम फेंके। कुँवर प्रताप भी उस समय उनके साथ थे। बम धमाकों में वायसराय लहुलुहान हो गया। इस क्रांतिकारी कारनामे ने ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया।
तत्पश्चात अंग्रेजों ने जोरावर सिंह और प्रताप सिंह बारहठ की गिरफ्तारी के लिए शिकंजा कस दिया। लेकिन दोनों पकड़ में नहीं आएं और वहां से फरार हो गए, परन्तु अंग्रेजी हुकूमत ने दिल्ली से बाहर जाने के सारे रास्ते बंद कर दिए थे। इसलिए 48 घंटे तक कुँवर प्रताप सिंह बारहठ एक पुल के नीचे लटके रहे। जिससे उनके हाथों में सूजन आ गई और वे नीचे गिर गए तब उन्हें उधर से गुजर रहे 2 अंग्रेजी सैनिकों ने पकड़ लिया। और उन्हें वहां से ले जाने लगे तभी वहां उनके चाचा जोरावरसिंह आ गए और उन्होंने उन दोनों अंग्रेजी सैनिकों को मारकर कुँवर प्रताप को उनकी कैद से आजाद करवा लिया।
अपने चाचा जोरावर सिंह बारहठ के साथ वायसराय लार्ड हार्डिंग पर बम फेंकने के चलते उन्हें अपराधी माना गया और उन पर मुकदमा चलाया गया, जिसमे साक्ष्य नहीं मिलने के कारण इन्हें रिहा कर दिया गया, लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य की जड़े हिला देने जैसे कार्य के चलते अंग्रेजी हुकूमत द्वारा इन्हें दूसरे केस बनारस प्रकरण के तहत पुनः गिरफ्तार कर लिया गया। स्पेशल सेशन जज ने उन्हें दोषी मानते हुए कड़ी सजा सुनाई, वहां से उन्हें बरेली सेंट्रल जेल भेज दिया गया।
जहाँ अंग्रेजी हुकूमत द्वारा इन्हें कठोर से कठोर यातनाएं दी गई। इन्हें अपने साथियों के नाम बताने हेतु कई प्रकार के प्रलोभन दिए गए, इनको क्रांति-पथ से विचलित करने के लिए अंग्रेजी सरकार ने अमानवीयता की सारी हदें पार कर ली, मगर फिर भी प्रताप अपने लक्ष्य से एक कदम भी नहीं डीगे, भयंकर से भयकंर प्रताड़नाएँ सहने के बाद भी टस से मस नहीं हुए।
तत्पश्चात वायसराय के खास मंत्री चार्ल्स क्लीवलैंड ने भी उनसे मुलाकात की और प्रताप से कहा, की अगर तुम अपने साथियों और उनकी योजना के बारे में सही जानकारी देते हो तो तुम्हें और तुम्हारे पिता केशरीसिंह बारहठ (जो कि उस समय क्रांतिकारी गतिविधियों में सम्मिलित होने व लोगो को क्रांतिकारिता के प्रति जागरूक करने के चलते जेल में बंद थे) को जेल से छोड़ दिया जाएगा, तुम्हारे चाचा जोरावरसिंह बारहठ का वारंट रद्द कर दिया जाएगा और तुम्हारी सारी संपत्ति भी लौटा दी जाएगी (जो कि क्रांतिकारी गतिविधियों में सम्मिलित होने के कारण इनके पिता केशरीसिंह जी बारहठ की सारी संपति, जागीरी ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर ली गई थी)। तब भी इन्होंने अपना मुँह नहीं खोला।
तब चार्ल्स क्लीवलैंड ने इनसे इनकी माँ के बारे में बात कर इनका मुँह खुलवाने की सोची और कहा की तुम्हारी मां तुम्हारी याद में हर वक्त फूट-फूट कर रोती है, तुम्हारे द्वारा तुम्हारे साथियो के नाम बता देने पर उसका रोना हँसने में बदल सकता है। इस पर प्रताप ने कहा - "मैं अपनी एक माता को हंसाने के लिए हजारों, लाखों माताओं को नहीं रुला सकता।"
इतना सब कुछ करने के बाद भी प्रताप नहीं टूटे तो फिर से अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें कड़ी से कड़ी यातनाएं देनी शुरू कर दी।
अंत में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा अनेक प्रकार की दी जाने वाली कठोर से कठोर यातनाएं सहते हुए 24 मई 1918 को उन्होंने दम तोड़ दिया। उस वक्त उनकी उम्र महज 25 वर्ष थी।
उनका मृत शरीर जनता के सामने आने से कहीं फिर से कोई क्रांतिकारी खड़ा ना हो जाएं, इस उद्देश्य से अंग्रेजी हुकूमत ने उनके मृत शरीर की पार्थिव देह को जेल के ही अंदर किसी कोने दफन कर दिया।
जन्मदिन के दिन ही अपने जीवन को राष्ट्र को समर्पित कर मृत्यु का वरण करने वाले इस वीर से सम्बंधित एक और घटना भी बेहद उत्प्रेरक है। जब इनके पिता ठाकुर केशरीसिंह जी बारहठ, जो कि अंग्रेज सरकार की कैद में थे, उनको प्रताप के सामने लाया गया ताकि अपने पिता की यह दशा देख विचलित होकर प्रताप अपने साथियों के नाम बता दें। तब प्रताप के पिता ने अपने पुत्र की आंखों में देखते हुए कहा था - "याद रखना प्रताप! अंग्रेज सरकार चूक सकती है, मगर तेरे पिता की बंदूक का निशाना कभी नहीं चूकता।" और प्रताप ठहाका मारकर हसँ पड़े और कहाँ - "दाता हुक्म! आपके निशाने को मुझसे बेहतर कौन जान सकता है- यह जुबान मेरे जीते जी कभी नहीं खुलेगी और मरने के बाद तो खुलने का सवाल ही नहीं"।
यह थे देशहित में हँसते हँसते अपनी जान कुर्बान कर देने वाले अमर शहीद महान क्रांतिकारी कुँवर प्रताप सिंह बारहठ।
इस श्रृद्धांजली कार्यक्रम में बालोतरा चारण समाज अध्यक्ष नरपतसिंह रतनू, वरिष्ठ समाज सेवी मुलदान आशिया, चंडीदान आशिया, तन सिंह जुगतावत, कांग्रेस युवा नेता हिंगलाज दान थूम्बली, रक्तकोष मित्र मंडल अध्यक्ष दिनेश प्रजापत, मोहम्मद रमजान, राजूराम गोल, विक्रम सिंह चारण, पार्षद कांतिलाल हुंडिया, अनोप दर्जी, टीम रक्तकोष महिला कार्यकर्ता लीला जाजवा सहित कई समुदाय के गणमान्य हुए सम्मिलित और कुँवर प्रताप की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रृद्धांजली दे किया याद।
श्रृद्धांजली कार्यक्रम में नरपतसिंह रतनू व मुलदान आशिया सहित अन्य समाज बंधुओं ने कुँवर प्रताप सिंह जी बारहठ की जीवनी बताते हुए सभी को उनके पदचिन्हों पर चलने की प्रेरणा दी।
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